मुक्तिबोधपद्मावत की भाषा कौन सी है ? – Muktibodhpaddawat Ki Bhasa Kon Si Hai

Muktibodhpaddawat Ki Bhasa Kon Si Hai

Muktibodhpaddawat Ki Bhasa Kon Si Hai – आज हम आपको मुक्तिबोधपद्मावत की भाषा कौन सी है उसकी जानकारी देने जा रहे है।

मुक्तिबोधपद्मावत की भाषा कौन सी है ?

 मुक्तिबोध की काव्य भाषा उनके कथ्य के अनुरूप ही अपने ढंग की है । इसमें कवि के अनुभूत को संप्रेष्य बनाने की अद्भूत शक्ति है ,और वह जीवन के तथ्यों को उजागर करने में सक्षम है ।अभियक्ति  के समस्त खतरे उठाकर उन्होंने पारंपरिक भाषा शैली के मठों और दुर्गों को तोड़कर अपने अरुण कमल वाले उद्देश्य को भाषिक स्तर पर ही सफलता से प्राप्त किया है । उनकी भाषा में जो वैचित्र्य दिखलाई देता है ,वह इसीलिए है कि एक ओर तो जटिल और त्रासद अनुभवों से जूझ रहे थे ,और दूसरी ओर अभिव्यक्ति के संकट को भी महसूस कर रहे थे । मुक्तिबोध की भाषा उतनी ही मौलिक है ,जितना उनका चिन्तन मौलिक है । यहाँ उन्होंने अपनी और दूसरी भाषा का भेद मिटाकर अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक हर भाषा –अंग्रेजी , संस्कृत , उर्दू ,मराठी आदि किसी भी भाषा के चालू शब्दों को अपना लिया है । ऐसा लगता है कि मुक्तिबोध का शब्द-विधान बहुत ही डेमोक्रेटिक है । शब्दों के प्रयोग का मुक्तिबोध का अपना ढंग है । वे व्याकरण की परवाह नहीं करते ,बल्कि व्याकरण को अपनी भाषा की परवाह के लिए निमंत्रण देते हैं । कितने ही शब्द-प्रयोग ,कितने ही विशेषण और कितने ही मुहावरे ऐसे हैं ,जो मुक्तिबोध के काव्य में आकर अपना रूप बदल लेते हैं । इस बदलाव से आपके कविता की सम्प्रेषणीयता बढ़ी है ।
रक्तिम के रक्ताल , अंगारमय के लिए अंगारी ,अंधियारी के लिए अंधियाला,रुग्न के रोगीला और अचानक के लिए अचक आदि ऐसे ही प्रयोग हैं ,जिससे कविता की संप्रेषणीयता बढ़ी है विशेषणों के नए प्रयोग भी मुक्तिबोध की भाषा में देखने को मिलते हैं – प्यारी रोशनी , सर्द अँधेरा और चहचहाती साड़ियाँ आदि कितने ही ऐसे प्रयोग हैं ।
मुक्तिबोध की भाषा भागती-सी लगती है ।शब्द इतने तेज और तर्राट हैं कि पाठक भी कई बार भाव को पीछे छोड़कर शब्द के साथ ही भाग जाता है । भाषा में गतिशीलता है । शब्द ध्वनिमूलक हैं और बिम्व सर्जना के लिए बेहद कारगर सिद्ध हुए हैं । चटपट आवाज चांटों की पड़ती , सटर-पटर, धड़-धडाम , अरराकर गिरना और खट-खटाक आदि इसी प्रकार के प्रयोग हैं । 

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